पुरानी कर व्यवस्था बनाम नई कर व्यवस्था: एक विस्तृत तुलना
old vs new tax regime: पुरानी कर व्यवस्था बनाम नई कर व्यवस्था एक विस्तृत तुलनाभारत में आयकर व्यवस्था समय के साथ बदलती रही है, और करदाताओं को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार विकल्प चुनने की सुविधा दी गई है। 2020 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई कर व्यवस्था (New Tax Regime) की घोषणा की, जिसे वैकल्पिक रूप से पुरानी कर व्यवस्था (Old Tax Regime) के साथ लागू किया गया। दोनों व्यवस्थाओं में कई अंतर हैं, और यह करदाता की आय, निवेश और वित्तीय योजना पर निर्भर करता है कि उनके लिए कौन सा विकल्प बेहतर है। इस ब्लॉग में हम पुरानी और नई कर व्यवस्था की विशेषताओं, लाभों, कमियों और उनकी तुलना को विस्तार से समझेंगे।
old vs new tax regime: पुरानी कर व्यवस्था बनाम नई कर व्यवस्था एक विस्तृत तुलना
पुरानी कर व्यवस्था क्या है?
पुरानी कर व्यवस्था वह पारंपरिक ढांचा है जो दशकों से भारत में लागू है। इसमें आयकर अधिनियम, 1961 के तहत विभिन्न छूट और कटौतियों का लाभ उठाने की सुविधा दी जाती है। यह व्यवस्था उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो अपनी आय का एक हिस्सा निवेश करते हैं या बचत योजनाओं में डालते हैं। पुरानी व्यवस्था में कर स्लैब इस प्रकार हैं (वित्त वर्ष 2024-25 के अनुसार):
0 से 2.5 लाख रुपये: कर मुक्त
2.5 लाख से 5 लाख रुपये: 5% कर
5 लाख से 10 लाख रुपये: 20% कर
10 लाख रुपये से अधिक: 30% कर
इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष से अधिक) और अति वरिष्ठ नागरिकों (80 वर्ष से अधिक) के लिए छूट की सीमा में अतिरिक्त लाभ मिलता है। पुरानी व्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें धारा 80C, 80D, 24(b) आदि के तहत कई कटौतियाँ उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए:
Read more:Tech Mahindra share price
धारा 80C : पीपीएफ, ईएलएसएस, जीवन बीमा प्रीमियम आदि में निवेश पर 1.5 लाख रुपये तक की छूट।
धारा 80D: स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर 25,000 रुपये (वरिष्ठ नागरिकों के लिए 50,000 रुपये) तक की छूट।
धारा 24(b): गृह ऋण के ब्याज पर 2 लाख रुपये तक की छूट।
नई कर व्यवस्था क्या है?
नई कर व्यवस्था को 2020 में पेश किया गया और इसे 2023 के बजट में डिफ़ॉल्ट विकल्प बनाया गया। यह एक सरलीकृत कर ढांचा है जिसमें कर की दरें कम हैं, लेकिन छूट और कटौतियों का लाभ नहीं मिलता। इसका उद्देश्य कर प्रक्रिया को आसान बनाना और करदाताओं को निवेश के बिना कम कर देनदारी का विकल्प देना है। नई व्यवस्था के तहत कर स्लैब इस प्रकार हैं (वित्त वर्ष 2024-25 के अनुसार):
0 से 3 लाख रुपये: कर मुक्त
3 लाख से 6 लाख रुपये: 5% कर
6 लाख से 9 लाख रुपये: 10% कर
9 लाख से 12 लाख रुपये: 15% कर
12 लाख से 15 लाख रुपये: 20% कर
15 लाख रुपये से अधिक: 30% कर
नई व्यवस्था में आयकर छूट की सीमा को 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपये कर दिया गया है। साथ ही, 7 लाख रुपये तक की आय वाले करदाताओं को धारा 87A के तहत छूट मिलती है, जिससे उनकी कर देनदारी शून्य हो जाती है। हालांकि, इसमें धारा 80C, 80D, गृह ऋण ब्याज आदि की कटौतियाँ उपलब्ध नहीं हैं।
दोनों व्यवस्थाओं की तुलना
दोनों कर व्यवस्थाओं के बीच मुख्य अंतर कर स्लैब, छूट और कटौतियों में है। आइए इन बिंदुओं पर विस्तार से तुलना करें:
कर स्लैब और दरें
पुरानी व्यवस्था में कर स्लैब कम हैं, लेकिन दरें अधिक हैं। नई व्यवस्था में स्लैब की संख्या बढ़ाई गई है और दरें अपेक्षाकृत कम हैं। उदाहरण के लिए, 6 लाख रुपये की आय पर पुरानी व्यवस्था में 5% कर लगता है, जबकि नई व्यवस्था में यह 5% ही है, लेकिन 7 लाख तक की आय पर छूट के कारण कर शून्य हो सकता है।
छूट और कटौतियाँ
पुरानी व्यवस्था निवेश करने वालों के लिए लाभकारी है, क्योंकि इसमें 70 से अधिक छूट और कटौतियाँ उपलब्ध हैं। वहीं, नई व्यवस्था में केवल मानक कटौती (50,000 रुपये) और नियोक्ता द्वारा एनपीएस में योगदान (धारा 80CCD(2)) की छूट मिलती है।
लचीलापन
पुरानी व्यवस्था में करदाता अपनी वित्तीय स्थिति के आधार पर निवेश और बचत की योजना बना सकते हैं। नई व्यवस्था में यह लचीलापन नहीं है, क्योंकि यह बिना कटौती के काम करती है।
कर देनदारी का उदाहरण
मान लीजिए एक व्यक्ति की वार्षिक आय 10 लाख रुपये है।
पुरानी व्यवस्था: यदि वह 1.5 लाख रुपये धारा 80C में, 25,000 रुपये धारा 80D में और 50,000 रुपये मानक कटौती में निवेश करता है, तो कर योग्य आय 7.75 लाख रुपये रह जाती है। कर देनदारी लगभग 67,500 रुपये होगी।
नई व्यवस्था: बिना किसी कटौती के कर योग्य आय 10 लाख रुपये रहेगी, और कर देनदारी लगभग 75,000 रुपये होगी।
इस स्थिति में पुरानी व्यवस्था बेहतर है। लेकिन अगर व्यक्ति निवेश नहीं करता, तो नई व्यवस्था सस्ती होगी।
पुरानी कर व्यवस्था के लाभ और कमियाँ
लाभ:
निवेश को प्रोत्साहन देती है, जैसे पीपीएफ, बीमा, म्यूचुअल फंड आदि।
गृह ऋण लेने वालों के लिए ब्याज पर छूट।
उच्च आय वाले व्यक्तियों के लिए कर बचत के अधिक अवसर।
कमियाँ:
जटिल प्रक्रिया, क्योंकि कटौतियों के लिए दस्तावेज़ जमा करने पड़ते हैं।
जो लोग निवेश नहीं करते, उनके लिए महंगी हो सकती है।
नई कर व्यवस्था के लाभ और कमियाँ
लाभ:
सरल और पारदर्शी, कम कागजी कार्रवाई।
कम आय वालों (7 लाख तक) के लिए कर मुक्त।
बिना निवेश के भी कम कर देनदारी।
कमियाँ:
निवेश करने की प्रेरणा नहीं मिलती।
गृह ऋण या बीमा जैसी बड़ी कटौतियाँ नहीं मिलतीं।
कौन सी व्यवस्था आपके लिए बेहतर है?
यह आपके वित्तीय लक्ष्यों और जीवनशैली पर निर्भर करता है:
पुरानी व्यवस्था चुनें अगर: आप निवेश करते हैं, गृह ऋण चुकाते हैं, या स्वास्थ्य बीमा लेते हैं। यह उन लोगों के लिए भी अच्छी है जो लंबे समय की बचत योजना बनाना चाहते हैं।
नई व्यवस्था चुनें अगर: आप निवेश नहीं करते, या सरल कर प्रक्रिया चाहते हैं। यह युवा पेशेवरों या कम आय वालों के लिए उपयुक्त है।
सरकार का उद्देश्य
नई कर व्यवस्था का लक्ष्य कर प्रणाली को आसान बनाना और करदाताओं की संख्या बढ़ाना है। सरकार चाहती है कि लोग अपनी आय को स्वतंत्र रूप से खर्च करें, न कि कर बचाने के लिए मजबूरी में निवेश करें। हालांकि, पुरानी व्यवस्था को बनाए रखने से यह संदेश भी जाता है कि निवेश और बचत को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता है।
पुरानी और नई कर व्यवस्था दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं। यह करदाता की आय, निवेश की आदतों और भविष्य की योजनाओं पर निर्भर करता है कि कौन सा विकल्प उनके लिए बेहतर है। अगर आप निवेश करने में रुचि रखते हैं और कर बचत के साथ वित्तीय सुरक्षा चाहते हैं, तो पुरानी व्यवस्था आपके लिए सही है। दूसरी ओर, अगर आप कम आय वाले हैं या निवेश से बचना चाहते हैं, तो नई व्यवस्था आपके लिए उपयुक्त होगी। अंत में, दोनों विकल्पों की गणना करके ही निर्णय लें ताकि आपकी कर देनदारी कम से कम हो और वित्तीय लक्ष्य पूरे हों।
FAQ
Question --> ओल्ड और न्यू टैक्स रिजीम में क्या अंतर है?
Ans--> पुरानी कर व्यवस्था में मूल वेतन का 10 प्रतिशत तक धारा 80CCD (2) के तहत कटौती के रूप में दिया जाता है. उधर, नई कर व्यवस्था में मूल वेतन का 14 प्रतिशत धारा 80CCD (2) कटौती के रूप में दिया जाता है।
Question--> New tax regime में क्या-क्या छूट है?
Ans--> न्यू टैक्स रिजीम के तहत अब 12 लाख रुपए तक की कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना होगा।